" ईर्ष्या – एक अभिशयप " ईर्षमया वयस्तव भें क्मय है ? ईर्षमया भयत्र एक बयव है जो स्वमॊ के ननययश अथवय स्वमॊ को दस ू यों से हीन सभझने की दशय
भें हृदम से उत्कीर्ा होतय है । मह भनर्षु म के जीवन ऩय ऩडी हुई शनन की उस कुदृष्र्षि के सभयन है ष्जसके कययर् भनुर्षम अऩनय जीवन व्मथा ही गॉवय दे तय है औय मह कुदृष्र्षि उस सयढे सयती शनन की भहहभय से बी अनॊत व भत्ृ मुऩमंत यहती है । वयस्तव भें शनन दे व ककसी बी प्रयर्ी के सॊऩूर्ा जीवनकयर भें केवर सवय ऩहय से सयढे सयत ऩहय के लरए ही आते
हैं ष्जसभें वह उस व्मष्क्त को उसके द्वययय ककए गमे सक ु भों व कुकभों कय ऩर् ू ा रूऩ से पर प्रदत्त कयते हैं ककॊ तु ईर्षमया कय भययय इॊसयन ऩूये जीवन बय जरन की आग भें भयनो बुन-बुन कय अऩनय अष्स्तत्व ही खो फैठतय है । ईर्षमया सभस्त
योगो की जननी है । इस सॊऩूर्ा चययचय ववश्व भें ष्जतने बी योग है उनसे फचने के लरए कभ से कभ ऩहर तो की ही जय सकती है ककॊ तु ईर्षमया उन बमयवह योगो की वह जननी है ष्जससे ननजयत ऩयनय भयनो असॊबव है । कहय जयतय है कक भनुर्षम के शयीय कय एक भहत्वऩूर्ा बयग उसकय भष्स्तर्षक होतय है औय महद मे सॊकि भें आ जयए तो भयनो भनुर्षम कय जीवन सॊकि भें आ जयतय है ककॊ तु ईर्षमया-रूऩी योग तो इॊसयन के हीन भष्स्तर्षक होने की दशय भें ही उत्ऩन्न होतय है औय ऩरयर्यभ
मे होतय है कक इॊसयन अऩने ववचयय-ववभशा कयने की ऺभतय बी खो फैठतय है । एक फयय को मह भयनय जय सकतय है कक ववश ्वबय के सभस्त ववषैरे जीव-जॊतुओॊ के ववष के उऩचयय हे तु कोई औषधध तो होगी ककॊ तु ईर्षमया इन सभस्त ववषैरे
जीव-जॊतुओॊ की वह जननी है ष्जसकय कयिय तो ऩयनी बी नही भयॉगतय। ईर्षमया योग से ग्रलसत व्मष्क्तमों के लरए इसकय तज्म एक ऐसी चन ु ौती है जो जीते जी ऩूयय हो जयए तो ऩयभयत्भय कय आशीवयाद, उसकय वयदयन, अन्मथय सभम ऩूयय, जीवन
सभयप्त। सयभयन्मत् इस अलबशयऩ कय भययय तो धचत्रगप्ु त जी के भयर् रेखों से ओझर सय ही हो जयतय है । भौंत भयगे तो भौंत नही औय सॊतोषऩूर्ा जीवन की तो आशय बी उस हदन भय गमी जफ इस योग से ग्रलसत हुए। हदर कय सुकून, घय भें चैन औय भयनलसक शयॊनत (ईर्षमया के वयदयन) न होने की दशय भें अच्छे से अच्छे घय तफयह हो गमे। आख़िय ईर्षमयारूऩी
एक अनत-सूक्ष्भ फीज ही तो अऩने भष्स्तर्षक भें फोमय थय अफ उसकी जडें पैर गमी औय उसने ववकययर रूऩ धययर् कय लरमय। जफ भनुर्षम के भष्स्तर्षक भें ईर्षमया कय बयव उत्ऩन्न होतय है तो इसके स्ऩर्षिीकयर् भें उसे ईर्षमया कय एक वयदयन
ननॊदय प्रयप्त होती है । अफ तो ईर्षमयारूऩी ऩौधे भें पर बी आने रगते हैं औय वह इतनय कुशर ननॊदक फन जयतय है की स्वमॊ की बी ननॊदय कयने से नही चक ा ऩ से ज्मों ईर्षमया कय प्रसयय हुआ, वयर्ी प्रवयह भें इसकय स्ऩर्षिीकयर् हुआ, सबी ू तय। ऩूर्रू अऩने दयू हुए, भयनलसक अशयॊनत व्मयप्त हुई, जीवन घि-घि तज्म कयने की भन ने चेर्षिय की ऩय अफ तो मभययज बी
अऩनय बैंसय उठयए ऐसय बयगे कक सीधय दे वरोक ऩहुॉचे औय सुयययज के सभऺ हयथ जोडकय फोरे – " प्रबु भुझे ऺभय कयें । भैं ष्जस व्मष्क्त की जीवन-ज्मोनत रेने गमय थय वह तो एक ऐसे बमयनक योग से ग्रलसत है ष्जसकय उऩचयय तो हभयये
दे वरोक भें सॊबव ही नही है औय महद इस योग से भैं ग्रलसत हो जयतय तो ननष्श्चत ही मह योग दे वरोक भें पैर जयतय।" इसके ऩश्चयत वह धचत्रगुप्त जी के सभऺ शीश नभन कयके फोरे - " प्रबु, इस व्मष्क्त कय जन्भ-भयर् ब्मौयय नर्षि कय
दीष्जए अन्मथ अनथा हो जयएगय। इस व्मष्क्त के कभों कय इसे मह दॊ ड लभरनय चयहहए कक मह भत्ृ मुरोक (ऩथ् ृ वीरोक) भें ही तडऩे।" अफ फेचयये की दशय तो उस धोफी के कुत्ते के सभयन हो गमी जो न तो घय कय ही यहय औय न ही घयि कय।
श्री ईश्वयचॊद्र ववद्मयसयगय जी ने अऩने जीवनकयर भें हुए अनुबवों के आधयय ऩय एक फयत कही थी -" तुम्हययी ननॊदय वही कये गय, ष्जसकी तभ ु ने बरयई की है ।" अफ तोडय ध्मयन इधय केंहद्रत कयनय है कक ननफॊध ईर्षमया – एक अलबशयऩ भें ननॊदय कय आगभन आख़िय कैसे औय क्मों? इससे सभझनय फेहद आसयन है । जहयॉ भयॉ (ईर्षमया) के चयरयत्रत्रक प्रबयव को प्रकयश भें
लरमय जय यहय हो वहयॉ उसकी ऩुत्री (ननॊदय) जो कक भयॉ से बी दो कदभ आगे यहती है , के चयरयत्रत्रक प्रबयव को प्रकयश भे
कैसे नय रें? वयस्तव भें - " महद कोई बी व्मष्क्त सदगुर्ों की प्रनतभय हैं तफ इन्ही सदगुर्ों कय अनयमयस ही पयमदय उठयकय रोग सयरतय व सहजतय से उसकी ननॊदय कय रेतें हैं।" अथवय इसे इस प्रकयय बी सभझ सकतें हैं कक व्मष्क्त महद सदगुर्ों की भनू ता है तो उन्ही सदगर् ु ों के चरते अन्म व्मष्क्त उससे जरन कय बयव मय ईर्षमया यखतें हैं औय सभयज की नज़यों भें
उस श्रेर्षठ ववचययों वयरे व्मष्क्त को मय उसके चरयत्र को धलू भर कयने के लरए वो ही व्मष्क्त सभयज भें उसकी ननॊदय कयतें हैं।
क्मय आऩ इस फयत से ऩरयधचत हैं कक आख़िय इन्हे मे अलबशयऩ कैसे औय क्मों लभरय? इसकय कययर् है दस ू यों से खद ु
को हीन सभझनय प्रययॊ ब ककमय, ईर्षमयारूऩी फयर् से हृदम त्रफधय, औय ननॊदयरूऩी ववष जो कक उस हरयहर ववष की बी भयॉ, ष्जसकी एक फॉद ू से सॊऩूर्ा सष्ृ र्षि कय ववनयश सम्बव है , कय शयीय भें आगभन हुआ। ऐसे ईर्षमयारु व्मष्क्तमों कय कहनय तो मे बी है कक हभ तम् ु हययी ननॊदय कयते हैं तभ ु हभययी कय रो औय कहनय इसलरए बी उधचत है क्मोंकक शैतयन (ईर्षमयाग्रस ्त ननॊदक) ककसी बी व्मष्क्त को शैतयन फनने की ही ययम दे सकतय है औय महद उस शैतयनो के अथक प्रमयसों के ऩश्चयत बी वह भनुर्षमोत्तभ फन गमय तो मे उस ईर्षमयाग्रस्त ननॊदक के जीवन की शयमद सफसे फडी व आख़ियी हयय होगी। वयस्तव
भें महद भैं आऩसे कहूॉ कक जयइमे औय जय कय के एक गहये कुएॉ भें कूद भरयए। तफ क्मय आऩ ऐसय कयें गे? अगय आऩ ऐसय नही कयें गे तफ तो आऩ जयनते ही हैं कक क्मों आऩ ऐसय नही कयें गे औय अगय आऩ ऐसय कयते हैं तो भैं फतयतय हू कक आख़िय वह ऐसी कौन सी दशयमें होंगी ष्जनके चरते आऩ ऐसय कयें गे मय तो आऩकय वववेक नर्षि हो गमय हो, अक्र ऩय ऩत्थय ऩड गमे हो मय कपय आऩ भुझ ऩय कुछ ज़्मयदय ही ववश्वयस कयते हो। ऩय वयस्तव भें ईर्षमयाग्रस्त ननॊदक तो ववश्वयस कयने मोग्म ही नही हैं, वह सष्ृ र्षि भें उऩेऺर्ीम हैं।
आऩ उनके सयथ कुछ सभम व्मतीत तो कीष्जए अगय आऩको बी मे योग, मे शयऩ नय लभर जयए तफ कहहएगय।
भुझे इस फयत ऩय ककसी ववद्वयन द्वययय कही गमी एक फयत स्भयर् हो आई है जो कक ऐसे व्मष्क्तमों ऩय सिीक फैठती है -
" कयजर से मुक्त अथवय कयलरख से मुक्त ककसी कऺ भें आऩ ककतने ही स्वच्छ क्मों नय घुसें एक न एक दयग तो अवश्म ही रग जयतय है ।"
इन ईर्षमयाग्रस्त ननॊदकों को उस हदन तो ययत भें शयमद त्रफल्कुर बी नीॊद नही आती हो ष्जस हदन इन रोगों की भॊडरी
नही सजती होगी, ष्जस हदन इन्हे ककसी की ननॊदय कयने कय सौबयग्म प्रयप्त नही होतय होगय। वयस्तव भें ईर्षमयाग्रस्त होने भें अधधक सभम नही रगतय है जफकक ईर्षमयाभक् ु त इॊसयन अऩने सॊऩर् ू ा जीवनकयर भें बी नही हो ऩयतय है ।
कुछ ववद्वयनों कय भत तो मे बी है कक सॊमभ से इस अलबशयऩ के प्रबयव को थोडय कभ ककमय जय सकतय है ऩय ऩूर्-ा रूऩ से इस शयऩ से भुक्त कैसे हो? इस प्रश्न ऩय सबी ववऻ (ववद्वयन ्) भूक हो जयतें हैं। भेयय तो भयननय मे बी है कक -
" ईर्ष्या वह दलदल हैं जिसमें ्दद आप फॉस ग्े तो िीवन िर फॉसे रह ियएॉगे और ज़््यदय हयथ पयॉव मयरे तो इसमें ऐसय फसेंगे कक िीवनमुक्त तो होंगे पर शय्द आत्मय इस मत्ृ ्ुलोक में ही ववचरण करे गी।"
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©लेखक: म्ॊक सक्सैनय (आगरय, उत्तर-प्रदे श, ियरत) ______________________________________________________________________ " ईर्ष्या – एक अभिशयप - म्ॊक सक्सैनय " ______________________________________________________________________ Editing and Uploading by: म्ॊक सक्सैनय (Mayank Saxena) (Original Writer) आगरय, उत्तर प्रदे श, ियरत (AGRA, Uttar Pradesh, INDIA)
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